Saturday, September 15, 2012

Hindi Diwas aur Humari bhasha ka wajood....


१४ सितम्बर हिंदी दिवस के रूप में भारत में मनाया जाता है... क्या हमने ये कभी सोचने कि जरुरत समझने कि कोशिश की दूसरे मुल्कों में, किसी दूसरी भाषा का भी दिवस मनाया जाता है...? जैसे कि इंग्लिश दिवस, उर्दू  दिवस, फारसी दिवस आदि. हम दूसरों के पीछे चलने वाले पिछलग्गू बनने से बाज़ नहीं सकते... कारण की ७०० वर्षों तक मुगलों/तुर्कों की गुलामी और फिर उसके बाद ३०० वर्षों तक अंग्रेजो की गुलामी, १९४७ में अंग्रेजों से आज़ादी मिलने के बाद परिस्थितियां वही ढाक के तीन पात... लेकिन जिस देश में बहुतायत में हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है उसे देश की राजभाषा की संज्ञा दे दी गयी... यह कहाँ तक सही है...?
भारत किसी एक सभ्यता या संस्कृति का नहीं वरण कई सभ्यताओं, संस्कृतियों और धर्मानुयायियों का एक विशाल संग्रह का परिचायक है. ऐसे में भारत जैसे देश में किसी भाषा को राष्ट्र भाषा का दर्जा नहीं दिया जा सकता लेकिन एक विडम्बना है की हिंदी को राज भाषा का दर्जा दे दिया गया. लेकिन न तो क्षेत्रीय भाषाओँ के लिए कोई कानून बना बना और न ही लोगों की अभिव्यक्ति को जानने की की कोशिश की गयी. इन सारी बातों के बावजूद भी लोगों ने नारा बना डाला "हिंदी-हिन्दू-हिन्दुस्तान." शायद यही वजह है की हिंदी भाषा ने सम्पूर्ण भारत को एक माले की मोतियों को पिरो कर रखा है.
वैसे तो भाषा अभिव्यक्ति की एक पद्धति है जो की हर देश में, हर प्रान्त में, हर क्षेत्र में अलग-अलग होती है. समय परिवर्तन के साथ भाषा में भी परिवर्तन होता रहता है. भाषा मानवों की, पशुओं की, पक्षियों की भिन्न होती है. यहाँ हम बात कर रहें हैं भाषा की... भारत की राष्ट्र भाषा की... हिंदी की... हिंदी! इसके इतिहास के बारे में हम जाने की कोशिश करते हैं तो हम पाते हैं कि हिंदी भाषा संस्कृत और पॉली भाषा से उद्गम स्वरुप से मणि जाती है. भाषा! किसी देश कि उन्नति और प्रगति में उस देश के नागरिकों का जितना योगदान होता है उससे कहीं ज्यादा योगदान भाषा का होता है. किसी कवि ने सही कहा है कि: "निज भाषा उन्नति अहै, सब मन्त्रों कै मूल."
आज जब भारत विकास के पथ पर पल-प्रतिपल अग्रसर है तो भाषा कि भूमिका किसी से छिपी नहीं है. पहले यहाँ कि जानता ने रजा-महाराजाओं कि गुलामी झेली, तुर्कों ने इस देश पर राज किया, अंग्रेजों ने इस देश को अपनी सफलता कि सीढ़ी बनाकर इस्तेमाल किया. १२०० वर्षों तक दूसरी सस्कृति और परम्परा की गुलामी झेलने के बाद भी हमने अपनी भाषा को नहीं छोड़ा, हाँ ऐसे में हम अनेक भाषाओँ से परिचित जरूर हुए उनमें उर्दू, अरबी, फारसी और अंग्रेजी मुख्य है, फिर हमने इन भाषाओँ की जानकारी करनी शुरू कर दी और इस आपाधापी में हम भूल गए की हमारी भी अपनी कोई भाषा है, जिसके माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति जताते आयें हैं. हमने दूसरी अन्य भाषाओँ को जानने और समझने में जो दिलचस्पी दिखाई वह उनके नियमों, कानूनों को जानने और समझने के लिए नहीं थी; वह दिलचस्पी तो थी अपने जीवन स्तर में भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए थी.
अंग्रेजों की गुलामी और उनके जुल्मों-सितम से बचने के लिए कुछ महापुरषों ने अपनी मातृ भाषा हिंदी को माध्यम से लोगों को जागरूक करने का काम किया और क्षेत्रीय भाषा में अपनी अभिव्यक्ति और विचारों से आम-जन मानस को अवगत कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी और उन महापुरषों की मेहनत रंग भी लायी, देश आज़ाद हो गया अंग्रेजों की गुलामी से. विश्व के सबसे बड़े और लोकतान्त्रिक देश का संविधान बना जिसे संग्रहित करने का कार्य डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी ने किया, लेकिन यह कार्य उन्होंने मराठी भाषा में में सम्पादित किया जिसे बाद में हिंदी में अनुवादित किया गया. इतने बड़े देश में जहाँ यह कहावत कही जाती जाती है की "कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी." लेकिन फिर भी संविधान का अनुवाद हिंदी में किया गया.
देश की आज़ादी के बाद हमारे देश के प्रधानमंत्री ने हिंदी को राज भाषा घोषित किया, और यह बयान दिया की हमारी राष्ट्र भाषा का प्रयोग किया जायेगा, ऐसे में जो क्षेत्र हिंदी भाषा की पकड़ से दूर हैं वहाँ पर सरकारी काम-काज क्षेत्रीय भाषाओँ के साथ-साथ अंग्रेजी में होने चाहिए. आज देश प्रत्यक्ष रूप से आज़ाद है, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से गुलामी की बात हमारे प्रधानमत्री जी ने कह डाली है.  आज हम भाषा की गुलामी झेल रहें हैं.... जिसका परिचायक है "हिंदी दिवस" .
मै ये जानना चाहता हूँ की जब हिंदी देश की राज भाषा है तो हमारी न्यायपालिका... हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में हिंदी में पैरवी की इजाजत क्यूँ नहीं दी गयी है? क्यूँ सैन्य सुरक्षा का कोई भी फरमान हिंदी भाषा में नहीं दिया जाता...? जबकि हमारे संविधान में ऐसी कोई धारा ऐसा कोई अनुछेद नहीं है फिर भी अपनी भाषा का इतना अपमान क्यूँ?
आप लोग सोच रहे होंगे कल था हिंदी दिवस और आज मै ये बातें क्यूँ लिख रहा हूँ...? कारण एकदम स्पष्ट है का दिन भर क्या चला और लोगों के या हिंदी के सेवकों की क्या राय थी को जानने की... 
पर अफ़सोस लोगों की अभिव्यक्ति हिंदी दिवस मनाने तक ही सीमित सी लगी... देश की नीति स्वार्थों के बलबूते पर कदापि नहीं चला करती. एक देश, एक ध्वज, एक संविधान और एक भाषा प्रत्येक नागरिक का नारा होना चाहिए... लेकिन जिस देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ही अपनी राष्ट्र भाषा की इज्ज़त नहीं करती, उसे आदर नहीं देती, वह भाषा उस देश की राज भाषा कैसे हो सकती है? और कैसे दूसरे देशों से आये हुए घुसपैठिये हिंदी को अपने भाषा स्वीकार करेंगे...? आखिर कैसे...? और कब तक हम करते रहेंगे अपनी ही भाषा का दिवस मनाने का दिखावा...? आखिर कब तक...?
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Atul Kumar
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