Monday, February 14, 2011

Sainik Badugt Banaam GARIBI

                 अतीत के युगों में जंगली आदमखोर जातियां भी हुआ करती थी. आदमखोर जंगली उतने ही आदमियों को मारता था, जितने से उसका पेट भर जाता था. आधुनिक सभ्य समाज के बड़े समझदार लोग, आदमी मार कर नहीं खाते हैं. फिर भी उन्होंने एटम बम बना रखे हैं कि सारी पृथ्वी को १८ से २० बार नष्ट कर सकें. हम एक बार में  पृथ्वी को १ बार तो मानव विहीन कर देंगे पर पृथ्वी को १९ बार मानव विहीन करने के लिए कौन आएगा? यदि जंगली जाहिल भी होते तो वह भी हैरान होते कि जब ये खाते नहीं तो मारने के  लिए हथियार क्यूँ बटोरते हैं?
             सभी राष्ट्रों का डिफेन्स बजट लगभग २५ प्रतिशत या अधिक होता है. जबकि सारी दुनिया में गरीबी की रेखा के नीचे भी इतने ही प्रतिशत लोग हैं. हमे प्रकृति ने और परमेश्वर ने गरीब नहीं बनाया है. हम गरीब हुए हैं अपरिपक्व मानसिकता की राहों पर जाकर, अपने ही मिथ्याभिमान के कारण. एटम बम और दूसरे हथियार, उन गरीब लोगो की भूख है जिनके साथ यह बम बना कर अन्याय किया गया. यदि हम केवल अमेरिका के ही डिफेन्स बजट को समाप्त कर दें तो सारी धरती पर संभवतः कोई भी व्यक्ति गरीबी की रेखा के नीचे नहीं होगा. साधारण लोगों का शोषण करने वाले लोग, उन्हें गरीबी की रेखा के नीचे रहने और घुट-घुट कर रहने को मजबूर करने वाले लोग, कदापि सम्मान के योग्य नहीं हो सकते हैं. बौद्धिक दिवालियापन का मारा होगा वह जो ऐसे लोगों को सम्मानित करे. क्या यह सच नहीं है कि विश्व में उन्ही लोगों का सबसे बड़ा सम्मान है, जिन्होंने सारे विश्व का शोषण कर एटम के दाँत बनाये हैं? एटमी दांतों को अपने मुंह में लगाने वाले लोग ही विश्व शांति की बात करते हैं. इतना स्पष्ट उदाहरण और कहाँ मिलेगा? यदि गली का गुंडा अपने घर में हथियारों का ज़खीरा इकट्ठा करने लगे तो मोहल्ले के सारे लोग दौड़ कर थाने जायेंगे और उसके खिलाफ रिपोर्ट लिखाएंगे. आश्चर्य है की दुनिया में एटम बम का सबसे बड़ा जखीरा रखने वालों को बहुत सम्मान देते हैं. आखिर ऐसा कब तक चलेगा? कब तक हम इन फरेबियों के पीछे के पिछलग्गू बन कर लगे  रहेंगे? आखिर कब तक.........