Tuesday, April 05, 2011

Eunuch.......

किन्नर! एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही ख्याल आता है कि अब तो हो गयी कहानी, और हमारी भेट भी हो ही जाती है जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर इनसे. कोई भी ख़ुशी का माहौल हो ख़ुशी बाँटने आ ही जाते है ये किन्नर..... हमने कभी सोचा है कि क्या है इनकी जिंदगी? शायद नहीं..... बचपन कि एक कविता "यदि होता किन्नर नरेश मै राज महल में रहता, सोने का सिंहासन होता सर पर मुकुट चमकता....... बंदी जन गुण गाते रहते दरवाजे पर मेरे...... बहुत अच्छी लगती थी जिसमे कविवर महोदय ने सब कुछ दे दिया था किन्नर को या यूँ कहूँ कि सारी सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण होते थे किन्नर...... लेकिन ये गुजरे ज़माने कि बात थी.... और शायद किन्नर का मतलब भी कुछ और रहा हो..... पर आज हम देखें तो किन्नर जिंदगी का वह पहलू है जो न तो पुरुषों कि श्रेणी में आता है और जिसे न ही स्त्री कि संज्ञा दी जा सकती है...........
             प्रकृति ने, भगवान या अल्लाह ने, विज्ञान कि भाषा में बोलूं तो एस्ट्रोजन और तेस्तास्तरोन हार्मोन्स कि कमी से ऐसा होता है..... मै उन कारणों में नहीं उलझना चाहता.....कारण कोई भी हो ख़ुशी और गम को तो वह भी महसूस करते हैं........ दिल उनके पास भी होता है...... उनमे भी होती हैं ख्वाहिशें....... लेकिन लिंग निर्धारण या यूँ कहूँ कि कुदरत कि मार, मार देती है उनके ख़ुशी गम और ख्वाहिशों को....
             कुदरत के इस अभिशाप के बाद भी वह करते हैं हमारे लिए दुआएं.... अपनी ख्वाहिशें मर जाने के बाद भी वह करते हैं प्रार्थना हमारी ख्वाहिशें पूरी होने कि.... लेकिन सवाल यह है कि हमने उनके लिए क्या सोचा??? सिर्फ चंद  पल का मनोरंजन..... या उनकी इस दशा को किसी जन्म के बुरे कर्मों का फल...... इससे आगे हम सोच भी नहीं सकते.... कारण इतना है कि वह होते है कुदरत कि मार के मारे हुए..... और आ जाते हैं हमारी हर एक ख़ुशी में खुशियाँ बाँटने..... दुआएं मांगने वह भी बिना हमारे बुलाये......
          वैसे भी भारत जैसे संस्कृति प्रधान देश में बोला जाता है कि " बिना बुलाये भगवान के भी घर आना और जाना नहीं चाहिए." शायद यही वह कारण हो जिसकी वजह से हम उन्हें हीन भावना कि नज़र से देखते हैं. हम ये क्यूँ नहीं सोचते कि वह भी इंसान ही हैं...... क्यूँ हम भूल जाते हैं लिंग भेद के चक्कर में इंसानियत को जो हमारी पहचान है...... क्यूँ देखते हैं हम इन्हें हेय दृष्टि से जब इनके पास भी दिल और ज़ज्बात है..... इनके लिए क्या कर रहे हैं हम और हमारी सरकार, क्या कर रहीं हैं हमारी समाज सेवी संस्थाएं? जब खुश और समाज में इज्जत के साथ रहना इनकी भी है ख्वाहिश....... जब ये भी हमारे साथ समाज के लिए, देश के लिए तैयार हैं कंधे से कन्धा मिलाकर चलने के लिए ......