Wednesday, February 02, 2011

Footpaath

फुटपाथ! इस शीर्षक को पढने में आपके जहन में एक सवाल आ रहा होगा कि ये क्या बताना चाह रहा है. क्या कभी हमने सोचा है कि फुटपाथ कितना जरुरी है, हम भारतीयों के लिए? शायद नहीं!
        फुटपाथ की कमी को महसूस करना हो तो आप हज़रतगंज (लखनऊ) की सडकों पर निकल कर देख सकते हैं. शाम के वक़्त सडकों पर टहलते हुए अगर आपका दिल बोल दे कि यार मूंगफली खानी है, तो शायद आपके दिल को निराश ही होना होगा. सौंदर्यीकरण के नाम पर सड़कें चौड़ी कर दी गयी, विद्युत कि अथाह व्यवस्था सडकों को चकाचौंध करने के लिए कर दी गयी, और सडकों के किनारे से छोटी पूंजी वाले दुकानदारों को हटा कर उनसे उनकी रोजी रोटी को छीन लिया गया.
       भैया!! २ किलो आलू, १ किलो मटर, १/२ किलो टमाटर जल्दी से दे देना, मूंगफली कैसे लगाई? केले कैसे दे रहे हो? ऐसे सवाल हम सडकों के किनारे दुकान लगाये फुटपाथी दुकानदारों से ही बोलते है. ऐसे सवाल हम मल्टी  काम्प्लेक्स और बड़े-बड़े शापिंग माल में जाकर नहीं करते और न ही हम मोल-भाव ही करते हैं वहाँ, और वहाँ जाना निम्नवर्गीय परिवार कि पहुँच से बाहर भी है. हम सब अब तक यही सुनते आयें हैं कि हिन्दुस्तान गाँवों में बसता है. और गावों का मतलब तो यही होता है कि जमीन से जुड़ा और एक आम आदमी का होना, ऐसे में अगर आज बेरोजगारी के दलदल से आम आदमी अपने तरीके से (फुटपाथ पर दुकान लगाकर) बाहर आना चाहता है, और आपनी रोजी रोटी चलाना चाहता है तो क्या ये गलत है?
         फुटपाथ जहाँ पर लगी दुकानों  से मध्यम और निम्नवर्गीय परिवार अपने जरुरत के सामानों को लेता है, वँही वह एक परिवार को रोज़गार देने में सहायता करता है जिससे उस छोटी पूँजी वाले परिवार कि रोजी रोटी चलती है. तो यह क्यूँ गलत है?
         फुटपाथ गांव में लगे छोटे से मेले से लेकर बड़े-बड़े धार्मिक स्थलों तक देखने को मिलता है. कल्पना कीजिये कि बिना फुटपाथी दुकानदारों के ये स्थल कैसे लगेंगे? इन सब की पहचान पटरी दुकानदारों से ही शोभनीय होती है, ऐसे में अगर पटरी दुकानदारों को वहां से हटा दिया जाए तो ये सोच कहाँ तक सही रहेगी? आज पटरी दुकानदारों कि जगह बड़े-बड़े उद्योगपतियों ने और फुटपाथी दुकान कि जगह इन उद्योगपतियों के बड़े-बड़े शापिंग माल और मल्टी काम्प्लेक्सों ने ले लिया है. ऐसे में कैसे अपनी रोजी रोटी चलाएगा फुटपाथी दुकानदार?
       सरकार ने फेरी नीति के तहत पटरी दुकानदारों को फुटपाथ से हटा दिया है. यह मामला १-२ या ३ शहरों का नहीं है, यह मामला है भारत के ८०० शहरों का जहाँ सौंदर्यीकरण की, यातायात की दुहाई देकर सरकार ने फुटपाथी दुकानदारों की रोजी रोटी छीनी है. ऐसे में सरकार ने क्या कोई ऐसी नीति बनाई है जिससे उसकी आजीविका चल सके?
        मै सिर्फ २ बातें जानना चाहता हूँ पहली की सरकार सौंदर्यीकरण चाहती है, या गरीब और बेरोजगार लोगों को आजीविका देना चाहती है? दूसरी की वह पटरी दुकानदारों को हटाना चाहती है  या यातायात की व्यवस्था को दुरुस्त करना चाहती है?
       
             मेरी समझ में फुटपाथ और फुटपाथी दुकानदारों को ख़त्म करना कोई विकल्प नहीं है. मै अब तक ये समझ नहीं पाया हूँ की सरकार हमेशा दोहरीकरण की नीति क्यूँ अख्तियार करती है? क्यूँ कोई ठोस विकल्प नहीं होता है सरकार के पास? क्यूँ हमेशा सरकारी महकमा घुटने टेक देता है पैसे वालों की योजनाओं के सामने? कब जागेगी सरकार आम और गरीब आदमी के लिए? आखिर कब?

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