Friday, December 23, 2011

एक मुलाकात भारतीय शरणार्थियों से.......

                   जिन्दगी भी कैसे-कैसे इम्तिहान लेती है, शायद पंजाब से आये हुए शरणार्थियों को नहीं मालूम था. अगर कोई ऐसा इन्सान होता १९८३-८४ के समय पर जो की भविष्य बता पाता तो शायद २७-२८ साल पहले अपने प्रदेश और जिले को लोग छोड़ कर ये लोग दिल्ली न आते..... और न ही अपनी जिंदगी को बचाने के लिए भविष्य को गर्त में डालते...... लेकिन कौन जनता था की अपने ही देश के किसी दूसरे कोने में अपने आपको और परिवार को सुरक्षित रखने की इतनी बड़ी सजा मिल सकती है जहाँ न तो वर्तमान सुरक्षित होगा और न ही भविष्य की कोई किरण दिख रही होगी.
               जी हाँ मै बात कर रहा हूँ पीरागाढ़ी शरणार्थी कैम्प में रह रहे लोगो की, जिन्होंने १९८३-८४ के दंगों के दौरान पंजाब प्रान्त को छोड़ा था...... लालच यह थी की अभी यहाँ से बहार निकल जाते हैं तो शायद हमारा जीवन सुरक्षित हो जायेगा और जब हालत सुधर जायेंगे तो हम वापस अपने-अपने घरों को लौट आयेंगे...... लेकिन तब से आज तक पंजाब और देश के हालत तो सुधर गए लेकिन इनकी सुध किसी ने लेने की जहमत न उठानी चाही..... और ये शरणार्थी आज भी दिल्ली के पीरागाढ़ी शरणार्थी कैम्प में रह रहे हैं.... इन्हें न तो दिल्ली सरकार ने हालत के सुधरने के बाद पंजाब भेजने का प्रयत्न किया और न ही पंजाब प्रान्त की सरकार को अपने लोगों की याद आयी....
                १८/१२/२०११ को दिल्ली के पीरागाढ़ी कैम्प में जाने का मौका मिला तो आज के आधुनिक भारत और भारत सरकार का यह चेहरा जान पाया....... इस कैम्प में लगभग ३५०० शरणार्थी परिवार जो की पंजाब से आये थे रह रहे हैं..... पहले इन्हें रहने के लिए ५ सेक्टर सरकार ने बनवाए थे और इनकी उचित सुविधाओं का ख्याल भी रखा जाता था जैसे-जैसे राजनीति बदली सरकार बदली और सरकार की नियत भी बदल गयी..... सरकार ने धीरे-धीरे इनकी सुविधाओं को बंद करना शुरू किया और आज हालत यह हैं की जहाँ पर ३५०० परिवार ५ ब्लाक में रह रहे थे अब उन्हें ३ ब्लाक में रहने की जगह दी गयी है.... ब्लाक A और B को बड़े-बड़े व्यवसाइयों की मिली भगत के चलते दिल्ली सरकार ने वहां पर शापिंग माल और पार्क बनाने का प्रोजेक्ट तैयार कर डाला है.... दिल्ली सरकार के इस रवैये पर न तो वहां का क्षेत्रीय विधायक कुछ बोलने को तैयार है और न ही विपक्ष की तरफ से इन्हें कोई संतावना मिल रही है.
               जब दिल्ली सरकार इनके निवास की व्यवस्था नहीं कर पा रही है तो इनके लिए रोजगार कहाँ से लाएगी? इन सालों के दौरान इन शरणार्थियों ने स्वरोजगार के माध्यम से अपनी जीविका चलायी है.... कुछ ने सिलाई, सब्जी बेचना, लोगो के यहाँ पर काम करना इत्यादि...... २७-२८ सालों के दौरान किसी भी शरणार्थी को न तो कोई सरकारी नौकरी मिली है और न ही सरकारी नौकरी का किसी भी तरह का आश्वासन..... इनके रहने की अगर बात करें तो नालियां पानी से बहरी हुई बजबजाती रहती हैं जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है, १ फेस की लाइन पर पूरे कैम्प को बिजली मुहैय्या कराई जाती है..... इस कैम्प में नेताओं का आगमन चुनाव के समय ही होता है.... उस समय इनसे नेताओं की अपनी परम्परा के अनुसार बड़े बड़े वादे करने की रस्म को पूरा किया जाता है और चुनाव के बाद वही होता है जो की पूरे देश के साथ किया जाता है.....
               यहाँ के लोगो से बात करने पर उन्होंने बताया की हम अब वापस भी नहीं जा सकते... पंजाब की सरकार को कई बार पत्राचार करने पर भी उनका कोई जवाब नहीं आया और अब तो सब कुछ बदल भी गया होगा..... २७-२८ साल पहले वहां से यहाँ आये और फिर सब कुछ यहाँ से वहां ले जाना बहुत कठिन काम है.... और इतना भी कठिन नहीं है यदि सरकार हमे वहां पर वापस हमे भेज दे और हमारी जमीनों को हमे वापस कर दे या फिर उसके बदले हमे मुनासिब मुआवजा देदे..... अगर सरकार ऐसा नहीं कर सकती तो हमे कम से कम जो हमारी जरुरी आवश्कताएं हैं तो हमे प्रदान करे..... लेकिन सरकार यह भी करने को तैयार नहीं...... अगर हमे मालूम होता की सकरार हम लोगो के प्रति इतनी उदासीन हो जाएगी तो हम कभी भी पंजाब को छोड़ कर नहीं आते.... भले ही हम मरते या फिर मार दिए जाते..... कम से कम हालत के काबू होने के बाद भविष्य की कुछ तो संभावना रहती . आज हमने अपनी जिन्दगियाँ तो बचा ली हैं पर भविष्य पूर्ण-रूपेण अंधकारमय हो गया है.....  हमारी तो हालत ठीक वैसे ही हो गयी है जैसे की धोबी का कुत्ता....... न हम घर के रहे और न हीं घाट के.......
               जब हम भारतवासी होकर भारत में अधिकार पाने के पात्र नहीं हैं तब भारतीय सरकार विदेशी सरकारों को क्यूँ कोसती हैं? जब हम अपने लोगों की सुरक्षा और उनके जीवन-जीविका को सुरक्षित नहीं कर सकते हैं तो हम किस हक़ से विदेशी सरकार के ऊपर लांछन लगते हैं की वहां पर भारतीय सुरक्षित नहीं हैं..... ऐसे में क्या होगा लोकतंत्र का और क्या होगा भारत की जनता का......??????? यही सवाल लेकर मै वहां से निकल आया..... जवाब पाने का कोई रास्ता नहीं है और न ही जो इसका जवाब दे सकते हैं वो देना चाहते हैं......

Atul Kumar
Mob. +91-9454071501, 9554468502
Blog: http://suryanshsri.blogspot.com/

1 comment:

  1. अपनी ही धरती पर शरणार्थी बने रहने का दर्द बेहद गहरा होता है। यह बहुत अफसोसनाक है कि सरकारें इनके ज़ख्मों पर बजाय मरहम लगाने इनके साथ निहायत ही बेहूदा मज़ाक़ कर रही हैं...आपने एक सार्थक तथ्य सामने लाया है आपको साधूवाद

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