Thursday, July 14, 2011

Guru Poornima aur Guru

               जैसा की आज गुरु पूर्णिमा है...... और इस अवसर पर दुनिया के कोने-कोने से लोग अपने गुरु की अनुकम्पा पाने के लिए आतुर होते हैं...... क्या आज का दिन (गुरु पूर्णिमा) ही गुरु के लिए बनाया गया है? बाकी के दिनों में क्या गुरु का आदर और सत्कार नहीं होना चाहिए? हम अपनी संस्कृति इतनी आसानी से क्यूँ भूल जाना चाहते हैं? जब की दुनिया के अन्य देशों के लोग हमारी संस्कृति को अपनाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं..... हमारी ही संस्कृति ने कहा है की:
                                   "गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः,
                                     गुरु साक्षात् परब्रहम तस्मै श्री गुरुवे नमः."
                जब गुरु ही हमारे लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं तो फिर हम क्यूँ भूल जाते हैं की आज हम जो भी है वह सब गुरु की महिमा से है...... इंसान बचपन से लेकर जब तक अपने शरीर का त्याग नहीं कर देता तब तक वह सीखता रहता है.... पर जिंदगी में  कोई ऐसा पल आता है जब इंसान की सोच, उसके कार्य उसकी परिपक्वता का रूप ले लेते हैं....... उसके पीछे करण किसी न किसी से सीख पाना होता है..... जिसे हम गुरु कह सकते हैं. गुरु ही वह सर्श्रेष्ठ सत्ता होती है जो शिष्य को अपने बराबर ले जाकर प्रतिष्ठित करती है जहाँ वह स्वयं प्रतिष्ठित होती है...... हमारी युवा पीढी इस बात को समझना ही नहीं चाहती है कि आज दुनिया में जो कुछ भी है वह सब गुरु के ही संरक्षण से संभव है...... क्यूंकि कबीर जी ने भी कहा था कि:
                                        "गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागूँ पावँ.
                                         बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द देव बताय."
                      युवा पीढी कि सोच शायद यह हो कि ये उदाहरण जब के दिए गए हैं जब  गुरुकुल में गुरु छात्रों को सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान, शिल्प, धनुर्विद्या, ज्योतिष, अध्यात्मिक, राजनीति तथा सभी प्रकार की नीति ज्ञान की शिक्षा प्रदान करते थे. गुरु को मात्र शिक्षित करने का अधिकार था परन्तु व्यावहारिक रूप से कर सकने की सामर्थ्य उन्हें प्रदान नहीं की गयी थी. जैसे वह ज्योतिष पढ़ा सकता था पर ज्योतिषी नहीं बन सकता था. पर आज के दौर में गुरु प्रत्येक क्षेत्र में अपने को व्यावहारिक रूप से लाना चाहता है और गुरु नाम कि गरिमा से आज के गुरु का कोई लेना नहीं है...... वह सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोचने की क्षमता पर ध्यान देता है......
               युवा पीढी भी करे तो क्या करे? जब गुरु की सोच यही है तो से कहाँ तक बदला जा सकता है? हमे इन बातों से लेना देना नहीं है क्यूँ की हमारी संस्कृति ने हमे बड़े बुजुर्गों का आदर और सत्कार करना सिखाया है..... तो ऐसे में जब गुरु को गोविन्द से ऊँचा बताया गया है तो उनका आदर हम कैसे भूल सकते हैं?कैसे भूल सकते हैं हम अपनी संस्कृति को?


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Atul Kumar
Mob. +91-9454071501, 9554468502
Blog: http://suryanshsri.blogspot.com/


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