Sunday, April 10, 2011

ज़ीरो अर्थात शून्य या यूँ कहे गोल (0) तो क्या ये गलत होगा? क्या हमने कभी सोचा है की शून्य कितना बड़ा है, जिसे हम कुछ नहीं समझते. अगर कभी किसी छात्र के किसी भी विषय में ०/५० अंक होते है तो हम कहते हैं की इसे कुछ नहीं आता,क्यूँ? जब की हम सभी जानते हैं कि किसी भी कार्य की शुरूआती गणना हमेशा शून्य से ही होती है. फिर उस छात्र को क्यूँ इस नज़रिए से देखा जाता है की वह सबसे निरीह प्राणी है इस समाज का? गणितीय विधि से देखा जाये तो शून्य शेष सभी अंको पर भरी पड़ता है चाहे वह गुणा करना हो या फिर किसी से भाग देने की, बड़े से बड़े अंक को अपने बराबर लाने की ताकत होती है इस छोटे से गोले में जिसे हम कहते हैं शून्य. ऐसा क्या है इस छोटे से गोले में जो सबको कर देता है गोल अर्थात शून्य? हम बात करे सूर्य की, पृथ्वी की, चंद्रमा की, तारों की या फिर इन सबको देखने और इनका आभास करने वाली आँख का ये सभी है गोल, वृत्ताकार या यूँ कहें शून्य........ क्या यह गलत है? जब हम जानते है की समस्त सृष्टि ही गोल है, तो हम ०/५० को हीन भावना से क्यूं देखते हैं? क्या हम अपने आपको धोखा नहीं दे रहे है? क्या यह ० उस ५० तक पहुँचने की शुरुआत नहीं है? क्या ५० पहले आ जाएगा और ० बाद में आएगा? क्या शून्य का कोई महत्त्व नहीं है? शून्य से दो बातें मेरी समझ में आती हैं पहली की शून्य अनन्त है, दूसरी यह जो आम जन मानस की धारणा है की शून्य का कोई मतलब नहीं?
              यहाँ पर आम जन मानस की धारणा होगी की क्या पागल आदमी है..... बात शून्य की कर रहा है और उदहारण दे रहा है एक छात्र/छात्रा का जिससे इसको पढ़ कर उसका भविष्य बर्बाद हो जायेगा क्या ये भी उसी ०/५० में ही शामिल है? मै बताना चाहता हूं की ऐसा बिलकुल नहीं है.... मै सिर्फ इतना बताना चाहता हूं की आज हम जिस दौर में जी रहे हैं उस दौर को जरुरत है किसी भी मामले को जमीनी स्तर से देखने की और जो शुरू होगी शून्य से ही..... फैसला आपका होगा की आपका नजरिया क्या होता है?....

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