Sunday, March 06, 2011

कथाएं एवं ग्रन्थ

                     दासता के लम्बे अंतरालों में लुप्त हो भारत-भारती, एक अँधेरे युग से लम्बे काल तक गुजरती रही है. उस समय जिन विदेशी धर्मों का प्रभाव आया, उनमें धर्म का स्वरुप इतिहास तक ही सीमित था. ईसाईयत, ईसा के ऐतिहासिक काल से ही आरम्भ होती थी , इस्लाम भी एक ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि से उभरता हुआ धर्म था. ऐतिहासिकता को ही धर्म धरम मानने की मानसिकताओं ने यहाँ पर भी; अतीत के संत, ऋषि तथा सूक्ष्म दृष्टा, मनोवैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक उप्लब्धियों को केवल ऐतिहासिकता की दूरबीन से ही देखना आरम्भ कर दिया. इसी कारण भ्रमों का विस्तार होता चला गया. जो आज भी यथावत है. भारत को आदि संस्कृति ने धर्म ग्रन्थ के रूप में किसी पुस्तक को अकेले सम्मानित नहीं किया है. भारतीय संस्कृति तथा धर्म ने अतीत युग में, प्रकृति को ही धर्म का मूल ग्रन्थ माना है. एक ऐसा ग्रन्थ जिसे परमेश्वर ने स्वयं आत्मा के रूप में प्रगट होकर लिख रहा है. प्रकृति ही मूल ग्रन्थ है, तथा हम सब इस ग्रन्थ के अक्षर हैं. चारों वेद, ब्रह्मण, आरण्यक ग्रन्थ न्याय शास्त्र तथा पुराण आदि अध्यात्म  रुपी  विश्व विद्यालय  की  पाठ्य पुस्तकें  हैं. उपनिषद इन्ही पाठ्य पुस्तकों की संक्षिप्त टिप्पणियां हैं. सभी प्रकार के लीला  ग्रन्थ,  वेद  रुपी पुस्तकों का सरल एवं सरस, उदाहरणों सहित एवं  उद्वरणों  से युक्त,  स्पष्टीकरण हैं.  इस  प्रकार  लीला ग्रन्थ से लेकर वेद तक, धर्म का मूल पाठ नहीं है वरण धर्म का मूल पाठ जो प्रकृति है, उसको स्पष्ट करने वाला विश्वविद्यालय है. इसीलिए संस्थागत शिक्षा से पूर्व  सामाजिक, सामूहिक एवं परिपक्व शिक्षा को अतीत के युग में शिक्षा का ही उपक्रम माना गया.
                    बालक जिस अमृतमय ज्ञान को संस्थागत शिक्षा में पाने हेतु गुरुकुल में प्रवेश करेगा, उसी शिक्षा का सरल एवं सरस, स्पष्टीकरणों से युक्त ज्ञान को, वह राम और कृष्ण की लीलाओं में भागवत की कथाओं में तथा पौराणिक कथाओं में ग्रहण करता हुआ, संस्थागत शिक्षा की परिपक्व मानसिकता को शिक्षा से पूर्व ही प्राप्त कर लेता था. आधुनिक युग में बुढ़ापे तक उसे अस्मिता का परिचय नहीं होता है. अतीत की शिक्षा कथाओं और लीलाओं के माध्यम से अस्मिता का निःसंदेह परिचय प्रदान करके ही, समाज उसे संस्थागत शिक्षा की ओर भेजता था. अतीत के युग में संस्थागत शिक्षा में भी इन्ही कथाओं और मनोविज्ञान को सरल एवं सरस रूप में ग्रहण करता था.
                  इस प्रकार सभी कथाएं एवं ग्रन्थ प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का प्रत्येक क्षण बनाते रहे हैं.........

3 comments:

  1. Hareesh ji dhanyawaad, hum aapka swagat karte hai aur bhavishya me hindi lekhan ko badawa dene ke liye hum sab ek saath hain, Aur aashaa karte hain ki hum sab rk dusre ke saath jude rahenge....

    ReplyDelete
  2. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete