Thursday, January 09, 2025
विपक्ष की परिभाषा से अंजान है कांग्रेस
Saturday, December 18, 2021
वास्तविकता को नजरंदाज करते हमारे प्रधान
भारत के लिए अभिशाप बनकर आया वह मनहूस जिसने वाडमेर रेलवे स्टेशन बनने से पहले ही चाय बेचनी शुरू कर दी थी वह भी दो रुपए में जब दिल्ली में 50 पैसे में भरपेट नाश्ता मिलता था। उसके इस झूठ पर हम भावनात्मक रूप से मुग्ध हो गये कि यह गरीब परिवार से है और बिना सत्य का आंकलन किये उसके झूठ को, उसके फरेब को सत्य मान बैठे, और अपने परिवार को, अपनी पत्नी को धोखा देने वाले को 2014 में सम्पूर्ण भारत की कमान दे दी और फिर मदारी ने वही राग अलापना, वही डमरू बजाना शुरू किया जिसके खिलाफ वह 2014 से पहले बोलता था। जिसने 2014 से पहले आधार को बकवास योजना बताई थी उसी को जरूरी करार दे दिया। जी एस टी के मूल स्वरूप को भ्रमात्मक व व्यवसायियों की कमर तोड़ने वाला बताया था उसको स्वीकार कर आर्थिकी स्थिति को मजबूत करने वाला बताकर जबरन थोप दिया। डीजल-पेट्रोल की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमतों के बढ़ने पर उससे पड़ने वाले अधिभार पर सरकार की विफलता बताने वाला आज पिछले सात वर्षों से मुंह में दही जमाकर बैठा है। मंहगाई कम करना जिसका नारा था अब वह मंहगाई के लिए बेचारा है। अपनी विफलताओं को पिछले 70 साल की जुमलेबाजी में लपेटकर वाहवाही लूटने वाले लूटेरे ने 70 सालों में बने सरकारी संस्थाओं को बेंचकर लूटने का काम किया और उल्टा सवाल करता है कि पिछले 70 सालों में नेहरू और कांग्रेस ने किया क्या है? इतिहास की मानें तो मुगलों ने मंदिरों को लूटा लेकिन इसने तो चौकीदार बनकर अपने आकाओं के साथ बैंकों को लूटा और फिर सरकारी संस्थाओं को बेंच डाला और अब वह...
✍️आजकल वह मैं देश नहीं बिकने दूंगा, जैसी खुबसूरत बातें नहीं करता।
✍️अब वह स्विस बैंकों में जमा काला धन जो अब डबल हो चुका है, पर बात नहीं करता।
✍️अब वो सब के खाते में 15-15 लाख रुपए आने की बात नहीं करता
✍️अब वह डॉलर के मुकाबले गिरते रुपए पर बात नहीं करता, अब वह जिस देश का रुपया गिरता है उस देश के प्रधानमंत्री की इज्जत गिरती है, ऐसी बातें नहीं करता।
✍️अब वह देश की गिरी हुई जी. डी. पी. पर मुंह नहीं खोलता, न अब वह देश में हो रहे बलात्कारों व अत्याचारो पर बात करता है।
✍️अब वो दागी मंत्रियों व नेताओं पर बात नहीं करता।
✍️अब वह महिलाओं की सुरक्षा व जमाखोरी पर बात नहीं करता।
✍️अब वह मिलावटखोरी पर बात नहीं करता, न अब वह रिश्वतखोरी पर बात करता है।
✍️अब वह स्मार्ट सिटी बनाने की बात नहीं करता, न ही अब वो बुलेट ट्रेन की बात करता है। अब तो वह अच्छे दिनों की भी बात नहीं करता।
✍️अब वह किसानों की आय दोगुनी करने की बात नहीं करते, अब तो वह बेरोजगारों को रोजगार देने की भी बात नहीं करते। अब वो सबको शिक्षा सबको रोजगार की बात भूल ही गये हैं।
✍️अब वह डीजल-पेट्रोल पर बात नहीं करते, गैस सिलेंडर के आए दिनों बढ़ते दामों पर तो बात ही नहीं करना चाहते!
✍️अब वह रेलवे व अन्य यातायात के साधनों पर बढ़ते किराए पर बात नहीं करता, वह हवाई चप्पल पहनने वालों को हवाई यात्रा कराने की भी बात नहीं करता।
✍️अब वह खाद्य पदार्थों पर बेहताशा बढ़ती महंगाई पर नहीं करता, अब वह बढ़ती हुई महंगाई पर मौन व्रत धारण किए हुए हैं।
✍️अब वह देश में बढ़ती बेरोजगारी पर बात नहीं करता। अब वह साल में 2 करोड रोजगार देने की बात नहीं करता।
✍️अब वह जनता को राहत देने की बात के लिए मुंह नहीं खोलते न ही अब वो सब को न्याय देने की बात करते हैं।
✍️अब वह चीन को लाल आंखें दिखाने की बात नहीं करते... अब तो वह एक के बदले 10 सिर लाने की बात भी नहीं करते।
सोचिए क्यों..? आखिर क्यों बात तक नहीं करते उन सभी मुद्दों पर जिनके बल पर देश की सर्वोपरि आसन पर बिठाया गया, आखिर क्यों? पहले भी उनकी कोई भी बात में गंभीरता न थी क्योंकि यह और इनका पितृ संगठन केवल भारत को साम्प्रदायिकता में झोंकने के लिए गंभीर रहा है। इनका मकसद सिर्फ सत्ता सुख हासिल करना है, वास्तविक मुद्दों और जमीनी हकीकत से इनका कोई लेना-देना नहीं है। जय हिन्द... जय भारत।
Saturday, June 06, 2020
बच्चों और पत्नी की हत्या कर खुद को लगाती फांसी।
त्महत्या?
✍️ घर का मुख्य दरवाजा एक फिर भी अपने बेटे-बहू और मासूम बच्चों से मतलब क्यों नहीं?
✍️ आखिर 30-35 लाख की कर्जदारी किसकी और किस आधार पर दिया?
घर में एक ही मेनगेट, आने जाने का एक ही दरवाजा, पूरे परिवार के सदस्यों का एक ही निकास था। फिर भी किसी को कुछ पता नहीं, ऐसी अनभिज्ञता... और इसी बीच उस घर में हरा-भरा परिवार जो अब खत्म हो चुका। कमरे के अंदर बिस्तर पर पड़ी पत्नी सहित तीन बच्चों लाशें, खुद रस्सी से लटकी विवेक की लाश। घर के बाहर जमा लोगों की भीड़, मौके पर जांच करती पुलिस डॉग स्क्वायड और फिंगर्स प्रिंट एक्सपर्ट की टीम... एक तबाह परिवार की कहानी बयां कर रही है।
अयोध्या परिक्षेत्र के डीआईजी संजीव गुप्ता, पुलिस अधीक्षक अरविंद चतुर्वेदी, जिलाधिकारी डॉक्टर आदर्श सिंह, सदर तहसील के एसडीएम अभय पांडे, सीओ सुशील कुमार सिंह सहित कोतवाल पंकज सिंह मौके पर पहुंचे।
बाराबंकी।
Saturday, September 15, 2018
अवैध अवैध कमाई से अरबों का मुनाफा दिखाता है उत्तर प्रदेश का परिवहन निगम:
वैसे तो उत्तर प्रदेश परिवहन निगम यात्री देवो भव: का राग अलापता रहता है परंतु यात्रियों की सुविधाओं से कोई मतलब नहीं होता यह बात ठीक वैसे है जैसे कि हाथी के दिखाने वाले दांत। इसका ताजा उदाहरण कैसरबाग से बहराइच जा रही बाराबंकी डिपो की बस संख्या यूपी 75 ऍम 5729 मैं देखने को मिला जब एक यात्री की बस किसी कारण से छूट गई थी, जिसे 5729 के परिचालक ने गंतव्य का टिकट देख कर और उसकी आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए बिठा तो लिया परन्तु देवीपाटन पर क्षेत्र के यातायात निरीक्षक राम मनोरथ और उनके साथी के0 सोनकर सहकर्मियों ने कैसरगंज के आगे टोल प्लाजा पर लगभग 11:30 बजे बस निरीक्षण किया तो निरीक्षण के दौरान उस यात्री का टिकट देखने के बाद भी उस यात्री को बिना टिकट मानते हुए उसका टिकट बनवाया और उस पर जबरदस्ती ₹50 की पेनल्टी भी लगाई, वो भी गाड़ी में सवार 35 यात्रियों के दबाव में नहीं तो यह पेनाल्टी टिकट के 10 गुने की होती। उस बस के परिचालक ने बताया कि यदि यात्रियों के द्वारा बीच में नहीं बोला गया होता तो ₹748 मुझे जमा करने पड़ते और डब्लू टी का केस खत्म कराने के लिए अभी ₹500 डिपो पर और देने पड़ेंगे।
अब सवाल यह उठता है कि निगम की साधारण बसों में जब किराया एक समान होता है और धनराशि भी निगम कोष में ही जमा होती है तो इस तरह की लालफीताशाही की मार यात्रियों और परिचालकों को क्यों झेलनी पड़ती है? वहीँ निगम अपनी बस बीच रास्ते में खराब हो जाने पर यात्रियों को घंटों इंतजार करवाता है और अगली बस के लिए बोलता है कि अगली बस आने दीजिए ट्रांसफर दिलवाया जाएगा। क्या उतनी ही सुविधा जो कि मात्र बैठने भर की होती है यात्रियों को मिल पाएगी पीछे से आने वाली बस में, वह तो पहले से ही यात्रियों से भरी होगी।
टिकट होने पर भी दूसरी बस में बैठने पर निगम के लाइसेंस धारी लुटेरे जिन्हें निगम प्रशासन ने यातायात निरिक्षण की जिम्मेदारी सौंपी है, यात्रियों को बिना टिकट मान लेते हैं, तो दूसरी बस में ट्रांसफर पर रोक क्यों नहीं लगाते? और क्यों नहीं दूसरीखाली बस का इंतजाम करवाते?
निगम प्रशासन से लेकर विभागीय मंत्री तक को सिर्फ यही लगता है कि परिचालक वो भी यदि संविदा का है तो चोर होता है और यात्री भी दस-बीस रुपये बचाने की कोशिश करता है, परन्तु वो यह नहीं जानना चाहते हैं डिपो में तैनात ड्यूटी रूम से लेकर सभी पटलों पर निगम के जो अपने सगे बेटे बैठे हैं बिना दाम लिए काम नहीं करना चाहते, और सड़क पर घूम रहे टी०यस०/ टी०आई० जिन्हें हाथों में डायरी थमा दी गई है, और जिम्मेदारी दी गई है कि यातायात व्यवस्था को सुगम बनाने और यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखे, सिर्फ वसूली का मकसद ध्यान रहता है। नहीं तो मनमाने ढंग से यात्रियों पर, संविदा परिचालकों पर दबाव बना कर निगम कोष में काली कमाई को जमा कराने का काम कारते हैं।
निगम प्रशासन की खास बात यह है कि इसे संविधान की, न्यायालयों के आदेशों की, श्रम नियमावली से कोई लेना-देना नहीं, इसके सारे के सारे नियम और कानून अपने फायदे के लिए होते हैं। प्रदेश में हर 5-10 साल में सरकारें बदलती रहती हैं, जो सुधार और विकास के बड़े-बड़े दावे करती हैं चुनाव से पहले और सत्ता में आने के बाद उसी सरकार और सरकार के मंत्री सब कुछ जानने के बाद भी आँख और कान बंद कर सिर्फ माहवारी का इन्तजार करते हैं। इन्हें यात्रियों की सुवुधाओं से, संविदा परिचालकों के भविष्य से, संविदा परिचालक के जीवन स्तर से कोई लेना-देना नहीं। निगम प्रशासन और विभागीय मंत्री को सालाना अरबों की कमाई से मतलब है, बाकी चाहे वर मरे या कन्या वही कहावत को चरित्रार्थ होना है।
Thursday, January 08, 2015
आधुनिक मानव और यंत्र निर्भरता
इस तरह सम्पूर्ण विष्व तो हमें हमारे आस-पास प्रतीत होता, लेकिन हम अपने आप से दूर हो गए हैं; हम अपनी मानसिक सोच से दूर हो गए हैं, मस्तिष्क विहीन से हो गए हैं। हम जितने निर्भर होते हैं यंत्रों पर उतने ही यंत्र हम पर सवार हो जाते हैं। जितनी हम उनकी सेवाएं लेते हैं उतनी ही वे हमें अपनी दासता से जकड़ते जाते हैं, गुलाम बना लेते हैं और हमें पता ही नहीं चलता कि हमारे साथ ऐसा कैसे हो गया। हम जिन भी चीजों का उपयोग करते हैं और पाते हैं कि वे सारी चीजें हमारा उपयोग करने लगी हैं; वे हमारी आदत बन जाती हैं, लत बन जाती हैं। फिर हम उनके बगैर नहीं रह सकते, हम उन पर पूरी तरह निर्भर हो जाते हैं, उनके बगैर अपंग से हो जाते हैं। हम यंत्रों का उपयोग करते-करते एक यंत्र हो गये हैं। कुछ ऐसा है हम पर यंत्रों के सत्संग का असर। जबकि और प्रकृति की चीजों पर दूसरों के संगत का असर नहीं पड़ता, शायद रहीम जी ने अक्षरषः सत्य कहा था-
‘‘जो रहीम उत्तम प्रकृति, का कर सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।’’
लेकिन हम मनुष्य यंत्रों के सामने विवष प्रतीत होते हैं। उनकी संगति ने हमें अपना दास बना लिया है। ऐसा कैसे और क्यांे होता है? ऐसा शायद इसलिए होता है कि हम उपयोग करते-करते इसे अपनी आदत बना लेते हैं, अपनी नितचर्या बना लेते हैं। आदत की प्रक्रिया ऐसी होती है कि उसके लिए बहुत होष और विवेक की आवष्यकता नहीं रहती है, धीरे-धीरे हमारे होष और विवेक की मात्रा क्षीर्ण होती जाती है। एक समय ऐसा आता है कि होष और विवेक की क्षमता न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाती है। ऐसी दषा में कोई भी यंत्र हम पर पूरी तरह सवार हो जाता है; और हम यांत्रिक मानव बन जाते हैं।
हम मानवों का मस्तिष्क भी कुछ ऐसा ही है, यह भी एक यंत्र है। जो सभी यंत्रों का राजा है। मस्तिष्क रूपी यंत्र ने सभी यंत्रों के निर्माण में प्रमुख भूमिका और दायित्व का निर्वाहन किया है। हम किसी और यंत्र का उपयोग करें या न करें, लेकिन मस्तिष्क के उपयोग के बिना तो बिलकुल जीवन संभव नहीं है। चूंकि हम अधिकांष समय इसी यंत्र का उपयोग करते रहते हैं तो यह स्वाभाविक ही है कि यह पूरी तरह हमें सम्मोहित करके हमारा मालिक बन जाता है। आज के समय में कोई ऐसा मनुष्य ढूढंना बहुत ही दुर्लभ है जो यंत्रों की गुलामी की जंजीरों में न जकड़ा हो।
यंत्रों की गुलामी और इसकी दासता हमें पूर्ण रूप से अपंग बना रही है। अगर हमने अभी नहीं चेता तो हमारी आने वाली पीढ़ी पूरी तरह से यांत्रिकी पर ही निर्भर हो जाएगी। उसके लिए तो अपने-आपको समझना मुष्किल हो जाएगा, न ही वह अपनी मर्जी से खा सकेंगे न ही पी सकेंगे। हमें अपनी इस यंत्र निर्भरता को त्यागना ही होगा। हमने यंत्रों का निर्माण अपनी सुविधा के अनुसार किया है, यंत्रों को हम मानवों पर निर्भर होना चाहिए न कि हम मानव यंत्रों पर निर्भर हो जाएं।
हमारी प्रगति ने यंत्रों की कुषलता बढ़ा दी है, लेकिन हमने यांत्रिकता से ऊपर उठने का कोई कदम नहीं उठाया, और न ही उठा पाने में सक्षम हैं, क्योंकि इन यंत्रों की सुविधाओं के दौर में हम, ‘‘अपने को, अपने विवेक को, अपने विचारों को भूल चुके हैं।’’ यही भूल अत्याधिक विनाषकारी है जो हमें विनाष की तरफ ढकेलती जा रही है।
अब यह निर्णय हमें लेना है कि हम यंत्रों की गुलामी और इसकी दासता से मुक्त होना चाहते हैं या फिर अपनी ही आंखों से अपनी अपंगता अपनी विवषता के नजारे देखते हुए विनाष की तरफ अग्रसर होना चाहते हैं!
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Sunday, September 22, 2013
वीरान थी दुनिया मेरी तेरे बगैर
हुश्न को ग़ज़लों में बयाँ कर दिया,
दिल के जज्बातों को अयाँ कर दिया.
वीरान थी दुनिया मेरी तेरे बगैर,
तुने आकर गुलिस्ताँ कर दिया.
याद माज़ी है तुम्हारा शुक्रिया,
जीना मेरा तुने आसाँ कर दिया.
मै था अदना एक मुसाफिर राह का,
सबने मिलकर कारवां कर दिया.
जुबां खामोश थी शब् था निशां,
अश्कों ने सब बयाँ कर दिया.
Wednesday, June 12, 2013
भ्रष्टाचार की लौ, नौनिहालों का भविष्य ढ़केल रही है अँधेरे की गर्त में.
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Barabanki-225001 (U. P.)