संस्कार शब्द के मेरा तात्पर्य आचरण तथा व्यवहार के द्वारा ग्रहण किये गए सूक्ष्म स्वाभाव से है. गुलाब में गुलाब कि गंध ही गुलाब का संस्कार है. ठीक उसी प्रकार अगले जन्म का ज्ञानरूपी गुलाब नहीं जाता, परन्तु संस्कार रूप में गुलाब कि गंध अर्थात ज्ञान द्वारा अर्जित सूक्ष्म स्वाभाव अवश्य जाता है. कल्पना करें कि एक व्यक्ति सड़क पर चला जा रहा है, ठोकर लगने से वह गिर जाता पड़ता है, उसके मुंह से पहला शब्द क्या निकलेगा? जो उसका सूक्ष्म अर्जित संस्कार है, वही बाहर आएगा. धार्मिक संस्कार वाले व्यक्ति के मुंह से हे भगवान! हे राम! या हे अल्लाह! निकलेगा. दूषित संस्कार वाले व्यक्ति के मुंह से "अबे" के साथ कोई भद्दी गाली स्वतः प्रकट हो जाएगी. दूसरा उदाहरण देना चाहूँगा, शराब पीने वाले व्यक्तियों के विभिन्न आचरण, विभिन्न संस्कारों के रूप में प्रकट होने लगते हैं. शराब पी कर कवि कविता करने लगता है, चित्रकार चित्र बनाने लगता है. गन्दा व्यक्ति अपने संस्कार के अनुरूप सड़क पर खड़ा होकर, गन्दी गालियाँ देने लगता है, तथा भद्दा आचरण करने लगता है.
शराब में न तो गाली थी, न ही कविता और न ही एक चित्रकार की क्षमता . इसी प्रकार परिस्थितियां जब अनायास किसी के सामने आती हैं तो उसकी पहली प्रतिक्रिया उसके सूक्ष्म अर्जित संस्कार का स्वरुप होती हैं. भले ही दूषित संस्कार वाला व्यक्ति सावधानी के समय में कुछ अच्छे व्यक्तित्व का प्रदर्शन क्यों न करे, विषम परिस्थितियों में अनायास, संस्कार घटनावश सामने आ ही जाते हैं. मै इसी संस्कार कि बात कर रहा हूँ. जो हमे अपनी विषम परिस्थितियों में सत्य रूप से सहज ही अपने आप से सामने आ जाते हैं. संस्कार शब्द से मेरा यही तात्पर्य है.