आज राजनीतिज्ञों को शासन सत्ता कि भूख ने इस कदर हैवान बना दिया है, ३१ जनवरी को उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अप्रत्याशित फैसला लिया जो कि पूरी तरह से मताधिकार का हनन करे वाला साबित होगा. जिसके दम से उन्हें कुर्सी तक पहुचने का रास्ता मिलता है वह उससे भी सिर्फ और सिर्फ अपने ही हांथों में रखना चाहते है, और उसके लिए लोक तंत्र को भी बलि चढ़ाने से पीछे नहीं हटना चाहते. इसका ताज़ा उदाहरण उत्तर प्रदेश की सरकार ने दे दिया है. पंचायती चुनाव में अपने मन माफिक जीत हासिल करने के बाद उसकी भूख कुछ इस तरह बढ़ी कि उत्तर प्रदेश की सरकार ने महापौर और नगर परिषद के चुनाव को अप्रत्यछ ढंग से कराने का ऐलान कर दिया है. ऐसा फैसला देश /राज्य की जनता के मताधिकारों का हनन नहीं कर रहा है, तो यह क्या है? क्या यही लोकतंत्र है?
हम देखते आयें हैं कि अप्रत्यछ चुनाव पर केवल और केवल धनबलियों, बाहुबलियों का ही होकर रह जाता है. इसका उदाहरण विधान परिषद के चुनाव में साफ़ दिखता है. अप्रत्यछ चुनाव हमेशा से भ्रष्टाचार को नई दिशा देता रहा है. उत्तर प्रदेश सरकार का यह फैसला भी इसके लिए एक नई कड़ी का काम करेगा. यदि आज हर स्तर के चुनाव को अप्रत्यछ ढंग से कराना ही सरकार कि मंशा है तो उसको कुछ ऐसा विकल्प बनाना होगा कि आने वाले विधान सभा/ लोक सभा के चुनाव भी अप्रत्यछ ढंग से और जनता के मताधिकार के बिना ही सम्पन्न कराए जा सकें. मै यह जानना चाहता हूँ कि जब सरकार ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए नित नए नए हथकंडे अपनायेगी तो केंद्र/राज्य सरकार के कर्मचारी कैसे बेईमान नहीं होंगे, इसका क्या प्रमाण है? मेरी समझ में यह बहुत बड़ा संकट है और उतना ही बड़ा सवाल है लोकतंत्र में मताधिकार को बचा पाने के लिए. क्या ऐसे फैसले से लोक तंत्र सुरछित है? क्या मताधिकार का यही मतलब है? इस सम्बन्ध में मै जनता से एक ही अपील करना कहता हूँ कि इस भ्रष्टाचार कि व्यवस्था से जितनी दूर रह सकें उतना ही अच्छा होगा हम आम जनता के लिए. जिस देश/राज्य कि जनता को मत का कोई अधिकार नहीं है तो सरकार को भी कोई जरुरत नहीं है कि वोह हम नागरिकों से कोई अपील करे. फैसला सरकार का होगा कि वह हमे मताधिकार का हक़ देती है या खुद को नागरिकों कि नज़रों में गिरता हुआ देखना चाहती है?
हम देखते आयें हैं कि अप्रत्यछ चुनाव पर केवल और केवल धनबलियों, बाहुबलियों का ही होकर रह जाता है. इसका उदाहरण विधान परिषद के चुनाव में साफ़ दिखता है. अप्रत्यछ चुनाव हमेशा से भ्रष्टाचार को नई दिशा देता रहा है. उत्तर प्रदेश सरकार का यह फैसला भी इसके लिए एक नई कड़ी का काम करेगा. यदि आज हर स्तर के चुनाव को अप्रत्यछ ढंग से कराना ही सरकार कि मंशा है तो उसको कुछ ऐसा विकल्प बनाना होगा कि आने वाले विधान सभा/ लोक सभा के चुनाव भी अप्रत्यछ ढंग से और जनता के मताधिकार के बिना ही सम्पन्न कराए जा सकें. मै यह जानना चाहता हूँ कि जब सरकार ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए नित नए नए हथकंडे अपनायेगी तो केंद्र/राज्य सरकार के कर्मचारी कैसे बेईमान नहीं होंगे, इसका क्या प्रमाण है? मेरी समझ में यह बहुत बड़ा संकट है और उतना ही बड़ा सवाल है लोकतंत्र में मताधिकार को बचा पाने के लिए. क्या ऐसे फैसले से लोक तंत्र सुरछित है? क्या मताधिकार का यही मतलब है? इस सम्बन्ध में मै जनता से एक ही अपील करना कहता हूँ कि इस भ्रष्टाचार कि व्यवस्था से जितनी दूर रह सकें उतना ही अच्छा होगा हम आम जनता के लिए. जिस देश/राज्य कि जनता को मत का कोई अधिकार नहीं है तो सरकार को भी कोई जरुरत नहीं है कि वोह हम नागरिकों से कोई अपील करे. फैसला सरकार का होगा कि वह हमे मताधिकार का हक़ देती है या खुद को नागरिकों कि नज़रों में गिरता हुआ देखना चाहती है?
No comments:
Post a Comment