कौन जगता इस धरा पर, कौन सपनों को सजोंता.
कौन पुष्पित पल्लवित हो, दुखों में भी मुस्कुराता......
कौन अपनी वेदना को, गीत सा है गुनगुनाता.
कौन अपनों को समर्पण, वेदिका पर है चढ़ता.......
कौन प्रिय के आंसुओं में, नेह की मुस्कान लाता.
कौन झीने से ह्रदय में, उतर कर फिर डूब जाता.....
कौन जीवन को समर्पित, कर परम संतोष पाता.
कौन अपने स्वार्थ की बलि, दे सभी अनुतोष पाता...
कौन मन को छू सका है, कौन तन को दूर पाता.
कौन अपनी सुरभि से ही, दूर से प्रिय को लुभाता.....
कौन मन नीरद सलिल से, ह्रदय मंजुल सींच जाता.
कौन अपने मधुर स्वर से, ह्रदय वीणा को बजाता.....
कौन अपनी रश्मियों से, इंदु को भी जगमगाता.
कौन अपनी धवलता से, मन कलुष सबको मिलाता.....
कौन दुःख में साथ रहता, कौन है धीरज बढाता.
कौन प्रिय की ज्योत्स्ना को, और भी उजला बनाता.....
कौन प्रिय सुख हित सदा, उन्मुक्त हो सब कुछ लुटाता.
कौन सपने चूर कर के भी, उसे सुख मय बनाता.....
कौन अपनी रागनी से, सदा ही मधुमय राग गाता.
कौन जग में दूर रह कर, भी ह्रदय के पास आता......
सदमित्र के अतिरिक्त ऐसा, कौन इस जग में करे.
दुःख ले सुख दे कर सारा, रश्मियाँ ज्योतम हरे.........
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